दोस्तों आपने से ज्यादातर लोगों ने अभी हाल ही में रिलीज हुई। द बिग बुल नाम की मूवी जरूर देखी होगी, लेकिन क्या आपको पता है कि द बिग बुल मूवी हर्ष मेहता नाम के व्यक्ति के ऊपर बनाई गई है। जो कि सच्ची घटना पर आधारित है। बता दे कि शेयर मार्केट घोटालों पर बनी द बिग बुल मूवी आजकल काफी चर्चा में है इस मूवी में 90 के दशक के सबसे बड़े घोटाले बाज हर्षद मेहता की जिंदगी की असली कहानी दिखाई गई है हर्षद मेहता को उनके समय में स्टॉक मार्केट का बेताज बादशाह कहा जाता था।

लोग उन्हें स्टॉक मार्केट का अमिताभ बच्चन भी कह कर बुलाते थे। उनके बारे में एक बात बहुत पॉपुलर थी कि वह जिस भी शेयर को छू लेते थे। उसके भाव रातों-रात बढ़ जाते थे।

यहां तक की लिफ्ट में एक बार उनसे वॉचमैन ने पूछा कि सर कोई टिप दीजिए तो उन्होंने कहा कि गाड़ी लेने से पहले उसके आगे टायर खरीदो तो उस व्यक्ति ने रातों-रात 500000 के किसी टायर कंपनी के शेयर खरीद के रख लिए थे, और अगले ही दिन वह शेयर 5 से 6 गुने हो चुके थे। तो इस तरह से उन्होंने काफी लोगों की हेल्प भी की। लेकिन लोगों को जब पता चला कि जिसको वह स्टॉक मार्केट का भगवान समझ बैठे, असल में एक बहुत बड़ा घोटालेबाज था। उस समय मानो लोगो के पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई हो। हर्षद मेहता ने लगभग 5000 करोड़ का घोटाला किया था 

जो भारत की स्टॉक मार्केट में हुआ अब तक का सबसे बड़ा घोटाला माना जाता है और आज की हमारी इस वीडियो में हम हर्षद मेहता के जीवन और उनके द्वारा किए गए घोटालों के बारे में जानेंगे। तो Fact 2m की एक और नए शानदार आर्टिकल में आपका फिर से स्वागत है। ये कहानी 29 जुलाई 1954 को शुरू होती है जो कि इसी दिन गुजरात के रहने वाले एक छोटे से व्यापारी परिवार में हर्षद मेहता का जन्म हुआ था। हर्षद के जन्म के कुछ समय बाद ही उनके पिता शांतिलाल मेहता अपने परिवार के साथ मुंबई शिफ्ट हो गए थे। जहां उन्होंने अपना टेक्सटाइल का छोटा सा बिजनेस शुरू किया। काफी कोशिश करने के बाद भी यह व्यापार नहीं चल पाया, जिसके कारण उनकी फैमिली छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर में शिफ्ट हो गई। दोस्तों हर्षद के पिता ने रायपुर में अपना बिजनेस जमा लिया और इसी शहर में हर्षद ने अपना बचपन और स्कूल की पढ़ाई पूरी की। हर्षद को क्रिकेट का बहुत शौक था। इस कारण हर्षद अपनी पढ़ाई में कुछ खास नहीं कर पाये। स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद हर्षद कॉलेज की पढ़ाई के लिए एक बार फिर मुंबई में आ गए। और साल 1976 में उन्होंने लाला लाजपत राय कॉलेज से बीकॉम की डिग्री हासिल की। उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई के साथ साथ ही हर छोटी-मोटी नौकरिया करना भी शुरू कर दिया था। इस नौकरी में सीमेंट और होजरी बेचने का काम भी शामिल था। और वह 8 साल तक इसी प्रकार की नौकरियां करते रहे। स्टॉक मार्केट में हर्षद की इंट्री उस समय हुई जब उन्होंने द न्यू इंडिया एश्योरेंस नाम की एक कंपनी में जॉब करना शुरू किया। इस कंपनी में काम करते हुए उनकी दिलचस्पी स्टॉक मार्केट में बढ़ने लगी।

और साल 1981 में उन्होंने इस नौकरी को छोड़ कर हरजीवनदास सिक्योरिटीज नाम की एक ब्रोकरेज फर्म को ज्वाइन कर ली। इस ब्रोकरेज फर्म में काम करते हुए उन्होंने जीवन दास को अपना गुरु मान लिया और कई साल तक उनसे स्टॉक मार्केट के पैतरे सीखते रहे। स्टॉक मार्केट में दिलचस्पी और बेहद तेज दिमाग होने के कारण हर्षद बहुत जल्दी ही स्टॉक मार्केट की सभी बारीकियों को समझ गए। और साल 1984 में स्टॉक मार्केट की बारीकियों को समझने के बाद में अपने भाई के साथ मिलकर ग्रोमोर रिसर्च एंड मैनेजमेंट नाम की एक कंपनी को शुरू किया।

और साथ ही मुंबई स्टॉक एक्सचेंज यानी BMC में बतौर ब्रोकर की मेंबरशिप ले ली। दोस्तों यही से उनका स्टॉक मार्केट का बेताज बादशाह और भारत का सबसे बड़ा घोटालेबाज बनने का सफर शुरू हुआ। साल 1984 से 1990 तक मात्र 6 सालों में ही हर्षद की कंपनी स्टॉक मार्केट की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार की जाने लगी। इस जबरदस्त सफलता के लिए उन्हें मैगजीन में लाया जाने लगा और दुनिया के बड़े-बड़े लोग उनसे मिलने के लिए तरसने लगे थे। उनके 1550 स्क्वायर फीट के घर और उनकी लग्जरी गाड़ियों ने उन्हें सेलिब्रिटी दिया। हर्षद जिस भी शेयर को छू लेती थी उसकी कीमत आसमान पर पहुंच जाती थी। उदाहरण के लिए अगर देखें तो हर्षद ने ACC कंपनी के शेयर की वैल्यू मात्र कुछ ही दिनों में ₹200 से सीधा ₹9000 तक पहुंचा दी थी। इसी तरह हर्षद जिस भी कंपनी में पैसा लगाते थे उसके स्टॉक की कीमत ऊंचाइयों पर पहुंच जाती थी। जिससे उन्हें करोड़ों रुपए का मुनाफा होता था और यही कारण था कि बहुत कम समय में ही हर्षद कामयाबी की ऊंचाइयों पर पहुंच गए थे। यहां तक पहुंचने के लिए लोग कल्पना भी नहीं कर पाते हैं जहां एक तरफ लोग हर्षद की इस कामयाबी और स्टॉक मार्केट में उनके अद्भुत ज्ञान को देखकर हैरान थे। वहीं लोगों के मन में यह सवाल भी था। आखिर कोई व्यक्ति हर बार इतना सही कैसे हो सकता है और लोगों के इसी सवाल ने हर्षद को आसमान से सीधा जमीन पर पटक दिया। साल 1992 में दुनिया के सामने के घोटालों का पर्दाफाश हो गया।

और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया 23 अप्रैल 1992 के दिन टाइम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार सुचेता दलाल ने अपने मैगजीन में हर्षद के इन घोटालों का पर्दाफाश किया था। सुचेता की इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद हर्षद के खिलाफ सबूत मिलना शुरू हो गए और इसके बाद एक के बाद एक उनके सभी घोटालों का पर्दाफाश होता रहा। उनके खिलाफ 70 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जिसके लिए सीबीआई ने उन्हें और उनके भाई को नवंबर 1992 के दिन गिरफ्तार कर लिया था। सबसे अहम सवाल यह था कि आखिर हर्षद मेहता इतने सालों तक इतना बड़ा स्कैम करने में कामयाब कैसे हो पाया और वह कौन सा तरीका था जिससे उसने इस घोटाले को अंजाम दिया था इन सभी सवालों के जवाब पत्रकार सुचिता दलाल ने अपने मैगजीन में दिए थे। सुचिता ने बताया था कि हर्षद बैंक के नियमों में कमियां ढूंढ कर उनका इस्तेमाल गलत रुप से खुद को फायदा पहुंचाने के लिए किया करता था। साफ शब्दों में अगर कहे तो हर्षद ने इस काम को अंजाम देने के लिए रेडी फॉर्वर्डिंग नाम की तकनीक का इस्तेमाल किया करता था। तो सबसे पहले आपको बताते हैं कि रेडी फॉर्वर्डिंग होती क्या है। 

दोस्तों हमारे देश में सरकार अपने योजनाओं के खर्चों को कवर करने के लिए सिक्योरिटी जारी करती है इन्हें गवर्नमेंट सिक्योरिटीज कहा जाता है। ये सिक्योरिटी कई प्रकार की होती हैं। जिसमें ट्रेजरी बिल, कैश मैनेजमेंट और गवर्नमेंट बॉन्ड शामिल होते हैं। इसके बदले में सरकार बैंक और इन्वेस्टर्स से एक तय समय के लिए पैसा लेती है और इन पैसों के बदले में सरकार सभी इन्वेस्टर्स को ब्याज देती है। उस समय सभी बैंकों और इन्वेस्टर्स को सरकार के हिस्से को रिलीज में एक तय किया हुआ अमाउंट इन्वेस्ट करना अनिवार्य होता था। अब ऐसे में अगर किसी बैंक को पैसों की जरूरत पड़ती थी तो गवर्नमेंट उसे एक बैंक से उठा कर किसी दूसरे बैंक में गिरवी रखकर कुछ समय के लिए एक लोन ले लेती थी और फिर कुछ दिनों बाद ब्याज सहित पूरा पैसा लौटा कर वापस कर देती थी। इस तरह से ये सिक्योरिटीज बैंकों के बीच एक-दूसरे से लोन लेने का साधन मानी जाती थी। और इसी को रेडी फॉरवर्ड डील कहा जाता था। इस डील में दोनों बैंकों के बीच कुछ लोग दलाली का काम किया करते थे। इन दलालों का काम सिक्योरिटीज बेचने वाले बैंकों के लिए खरीदार और सिक्योरिटीज खरीदने वाले बैंकों के लिए सेलर ढूंढना हुआ करता था। इस काम के बदले में दलालों को बैंकों से अच्छा खासा कमीशन मिल जाता था। हर्षद मेहता भी बैंकों के बीच दलाली का यह काम किया करते थे लेकिन उन्होंने इस बैंकिंग सिस्टम के अंदर कुछ खामियां ढूंढ ली थी जिसका फायदा उठाकर बात गलत तरीके से पैसे कमाने लगे थे। दोस्तों हर्षद जब किसी बैंक की सिक्योरिटीज के बदले किसी दूसरे बैंक से लोन का पैसा लेते थे। तब उस पैसे को बैंक को देने की बजाय स्टॉक मार्केट में लगा देते थे जिसके कारण उस कंपनी के स्टॉक का मूल्य बहुत तेजी से बढ़ने लगता था। जब वह बैंक उनसे अपनी सिक्योरिटीज का पैसा मांगता था तो वो दूसरे बैंक से पैसा लेकर पहले वाले बैंक को पैसा दे देते थे और इसी तरह उनके पास हर समय करोड़ों रुपए घूमते रहते थे।

तो दोस्तों अब आपको समझ में आ ही गया होगा कि हर्षद मेहता ने कैसे इतने कम समय में इतने अमीर बन गए तो आपका इस बारे में क्या कहना है हमको कमेंट में जरूर बताइएगा। 

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